जीवन सरिता नोंन - १ बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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जीवन सरिता नोंन - १

खण्ड काब्य-जीवन सरिता नौंन

         (लवणा सरिता)

‘परोपकाराय बहन्ति नद्याः’

अर्पण –

परम पूज्‍या – लवणसरिता – (नौंन नदी)

लवणाकूलों कल्‍लोलित मन-ज्यों द्रुमोंमृदुपात,

झूमते झुक झूलते, जल, वात से बतियात।

जल पिऐं पशु, विहग, मानव- शान्‍त,पाते शान्ति,

बुद्धि बल मनमस्‍त पाते, मिटे मन की भ्रान्ति।।1।।

परम पावन, पतित पावन, ब्रम्‍ह का अवतंश,

जान्‍हवी- सी जानकर, पूजन करूं तेरा।

जीव का जीवन, स्‍वजन उद्धार कारक,

लवणा सरिता को, सतत वंदन है मेरा।।2।।

 

समर्पण –

परम पूज्‍यनीय मातु, जन्‍म तब गोदी पाया।

जीवन दायकु द्रव्‍य, प्रेम-पय सुखद पिलाया।

स्‍वच्‍छ बसन पहिनाय, शीत खुद ने अपनाया।

मेरे सुख-दुख बीच आपका रूप समाया।

कर न सका तब सेव मैं, सच में आज तक,

क्षमा कीजिए कृपा कर, रहूं कृतज्ञ युगों तक।।1।।

योग-शक्ति को साध, साधना सफल बनाई।

 राखा सुत का ख्‍याल, देह निज अधिक तपाई।

पौष्टिक दिए अहार, सुक्रम से देह सजाई।

करुणा की अनुभूति, आपकी मूरति-पाई।

क्षमा करो, सब भूल कर प्रसब-वेदना जाल की।

पितु-मां जी स्‍वीकार हो, भावाज्‍जली, लालकी।।2।।

दो शब्‍दों की अर्चना –

मानव सभ्‍यता के इतिहास में पंचमहल धरती का अपना एक अनूठा गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। पूर्व सताब्‍दियों के साथ अष्‍टमी सताब्‍दी भी नवीन अनुभूति के, कई पन्‍ने पलटती दिखीं है।महाकवि भवभूति जैसे महान संत-कवि की धरोहर में सिन्‍धु, पारा, महावर और लवणा (नौंन) सरिताएं अपने कई नवगीत गातीं दिखीं हैं। महाकवि कालीदास का मेघदूत भी, इन सरिताओं का साक्षी रहा है।

     पद्मावती (पवाया) की पावन स्‍थली, इस त्रिवेणी संगम (सिंध-पारा-नौंन) की कड़ी के रूप में, कवि की जन्‍म – क्रीणा स्‍थली, नौंन नदी का अपना एक सह्रदय अनूठा चिन्‍तन स्‍थान रहा है। इस सरिता ने कई क्षेत्रों के साथ, इस पंचमहली क्षेत्र को भी अनूठा वरदान दिया है। धन, धान्‍य और वैभव से भरपूर सम्‍पन्‍न बनाया है। इस अद्भुत अनूठी अनुकम्‍पा के लिए मेरा अपना आभार प्रदान करना परम कर्तव्‍य बनता है। इसी क्रम में, खण्‍ड काव्‍य- जीवन सरिता नौंन- आप सभी सुधीर चिंतकों, साधनारतसाधियों को समर्पित है। इसकी सफलता के लिए आपका चिंतन स्‍वरूप ही, साक्षी होगा। धन्‍यवाद।

वेदराम प्रजापति ‘मनमस्‍त’

चिटौली (डबरा) ग्‍वालियर

म.प्र.

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वंदना–

करदे! वीणा-सी झंकार।

जन-गण-मन के, अन्‍तस्‍थल के, झंकृत हों सब तार।

कर दें। वीणा –सी झंकार, तेरी लहरैं हों उपहार।।

तूं है परम पाबनी शीतल, हरित हो रहा, तुझसे ही तल।

मूक दिशाएं बतियातीं हैं, तुझसे हर्षित होता, पल-पल।

तेरी लहरें,  लहरातीं यौं, ज्‍यौं वीणा के तार।।1।। कर दे ......

निकल रहा रवि-प्‍यारा-प्‍यारा, हटा दिशाओं का अंधियारा।

फैला है आलोक जहां में, पाकर तेरा प्‍यार- अपारा।

भाव-शून्‍य हृदय में भरदे, पाबन-प्‍यार अपार।।2।। कर दे....

धरा धान्‍य से भर जाए सब, गान होयगा तेरा ही तब।

ओली-झोली सब भर जाएं, आशिष दे मां ऐसी ही अब।

सत्‍यं – शिवं – सुन्‍दरम हो जग, जन जीवन आधार ।।3।। कर दे.......

पूर्बाभाष

गावलऋषि का तपधाम,ग्वालियर जिला सुहाना।

कई आश्रम,मंदिर,तप धाम,सुघर- पावन- स्थाना।।

भारत ह्रदय विशाल ,मध्यप्रदेश- जिसे कहते सब-

पंचमहल की पावन-भ्, करैं जहाँ लवणा गाना।।1।। -

डबरा, भितरवार और घाटी गाँव-गिर्द तहसीलें।

लवणा-नोंन दे रही सबको,भारी सम्रद्धि की शीलें।।

गंगा सी बनकर बहती है,सभी क्षेत्र हरियाली भर दी।

इसका अर्चन ही करके हम,खुशियों का जीवन ही जीलें।।2।।-

रम्‍य ग्राम, धरनी की काया, सुखमय सदां सबेरा।

बहत बसन्‍ती बयारि चहुं दिसि, भारत ग्राम बसेरा।।

ग्राम धरा का वैभव, कुटियां झोंपड़ी सुख का डेरा।

जहां सरस्‍वती और लक्ष्‍मी, करती प्‍यार घनेरा।। 3 ।।

भारत मूल,ग्राम हैं प्‍यारे, अखिल युवन से न्‍यारे।

हो मनमस्‍त प्रकृति जहां गावै, भारत- भारत प्यारे।।

पावस ने हर द्वार छेड़ दी, अपनी झिल्‍ली तान।

और पपीहा की पी-पी ने, खींच लिए थे कान।। 4।।